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कविता

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पाब्लो नेरूदा

अनुक्रम सुबह है भरपूर पीछे     आगे

सुबह है भरपूर झंझावात से
ग्रीष्म के हृदय में
मेघ करते हैं यात्रा विदा के सफ़ेद रुमालों की तरह,
सफ़री हवा लहराती उन्हें अपने हाथों में
असंख्य दिल हवा के धड़कते
हमारी प्यारी-सी चुप्पी के ऊपर

पेड़ों के बीच दिव्य
और वाद्यवृन्दीय-सा कुछ गूँजता
युद्धों की भाषा और गीतों जैसा
एक फुर्तीले धावे के साथ
बहा ले जाती हवा पीले पत्तों को
और मोड़ देती पक्षियों के फड़फड़ाते तीर
एक लहर में लरज कर गिरा देती हवा
शाख से रहित उत्साह में झुकी
उस भारहीन दृढ़ता को
उसके ढेर सारे चुंबन सेंध लगाते,
टूट पड़ते वे गरमी की हवा के दरवाज़े में
और डूब जाते ।

 


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